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About the book
शब्दों का आवागमन वर्षों से लेखक के मन के कोने-कोने ढूँढता फिर रहा था किंतु कभी मूर्त रूप में प्रकट न हो सका। अचानक लेखक के मन का द्वार खुला और कब कविता के रूप में ढलने लगा, उसे ज्ञात ही न हुआ। लेखक की स्वयं की उपलब्धि अत्यंत सुखकर थी। समय, परिस्थिति और मूड ने नवीन कविताओं को जन्म दिया। कभी वह दो पंक्तियों में ही सिमट जाती या फिर कभी भावों को समेटने के चक्र में लंबी हो जाती, किंतु लेखक की स्वयं की रचना थी इसलिए उसे आत्मसंतोष होता।
‘मन का द्वार’ लेखक के संजोये हुए वे भाव हैं जो आज कविता के रूप में द्वार से निकलकर मुक्त हवा में विचर रहे हैं।
About the Author:
जन्म लेना इस संसार की अद्भुत संरचना है। यह हमारी पृथ्वी की विलक्षण विशेषता है। मानव जाति बस यूँ ही बढ़ती रही है और मैं रीता सिंह गोण्डा, शहर (उत्तर प्रदेश) में 1946 में इसी क्रम को आगे बढ़ाती जन्मी।
संस्कारी व विद्वान माता-पिता ने जीवन की शिक्षा को अत्यंत संतुलित विचारों द्वारा पोषित किया। जीवन का आधार सुदृढ़ था सो हर आयु में कुछ नवीन जुड़ता ही गया। किशोरावस्था की कोमलता, युवावस्था की स्वप्निल आँखें, नवीन विचार गढ़ती ही गई। लखनऊ विश्वविद्यालय एवं कानपुर विश्वविद्यालय ने शिक्षा के साथ नजाकत, नफ़ासत व धरातल पर रहने की सीख दी।
विवाह के उपरांत फौजी पति के साथ मुंबई पधारी, जहाँ बहुमुखी आयाम थे। फौजी संस्कृति के अनुशासन के साथ जुड़कर लेखन भी साथ-साथ आरम्भ हो गया। धर्मयुग मेरी विशेष पत्रिका थी, जहाँ मैंने पत्रकारिता का कार्य किया। मेरे लेखन को एक सुंदर मार्ग मिला और निखार मिला। इसी अवधि में महाराष्ट्र साहित्य अकादमी की सदस्या होने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ, जहाँ गुणीजनों के सान्निध्य का अवसर मिला। मैं उन सभी से बहुत कुछ सीख सकी।
मैं साहित्यिक संतुष्टि के साथ-साथ, नवीन क्षेत्रों में भी झाँकने का प्रयास करती। कभी कुम्हार का चाक घुमाकर आकृतियाँ गढ़ती, कभी रसोई घर में नवीन व्यंजनों को जन्म देती या कूची ले रंगों की सहेली बन जाती, और तो और सूफी भजन गुनगुनाती। एक हर फ़न मौला सा मिजाज़ हो चला था।
जीवन के कई वर्ष श्रीलंका में भी बीते। व्यवस्थित देश, हरियाली से परिपूर्ण, स्वच्छता में ईश्वर के दर्शन, इन्हीं सभी विशेषताओं ने जीवन की मान्यताओं को और भी परिपक्व किया और निःसंदेह एक बेहतर व्यक्तित्व का निर्माण किया जहाँ अपनी कई कविताओं व चित्रों की रचना कर सकी।
आज मैं रीता, जब विगत झाँकती हूँ, आनंदित हो जाती हूँ। बिना किसी भार के जीवन जी सकी।
यह मेरा प्रथम कविता संग्रह है जो आपके समक्ष प्रस्तुत है।